Saturday 3 September 2011

इसीलिए मैं


पहाड़ो की चोटियों पर,
जो काम करते हैं, 
उनसे डर न लगे
इसीलिए मैं,
 घाटियों  में काम करता हूँ.

ठहरे हुए पानी में ,
ठहरने का खतरा है,
इसीलिए मैं,
दरिया के साहिल को मुकाम करता हूँ.
 
असमान की बुलंदियों का  तस्सवुर,
सबको है,
 पर लौटना इसी ज़मी पर है,
 इसीलिए मैं,
 जो ज़मी की हकीक़त जानते हैं, 
 उनको सलाम करता हूँ.

दिल में तपिश है, 
आग से भी ज्यादा ,
इस आग के दरिया में,
डूबने की इक आदत सी हो गयी है,
इसीलिए मैं,
खुद को जलाने का इंतजाम करता हूँ.

 हवाओं की तो फितरत है,
चलते रहने की ,
रुकना मुझे भी गवारा नहीं,
 इसीलिए मैं, 
 चलते रहने की कोशिश तमाम करता हूँ.

- सुमित श्रीवास्तव
 
   

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4 comments:

  1. I am not sure if i got the meaning but the poem is not structured well... Rhyming is good but in the 1st few paras u r talking abt reality and suddenly u started talking abt jumping in the fire...
    I think the theme of the poem is not clear..
    PS: Its just a review. I know you can wite better... ;)

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  2. पर लौटना इसी ज़मी पर है,
    इसीलिए मैं,
    जो ज़मी की हकीक़त जानते हैं,
    उनको सलाम करता हूँ.

    bahut khub
    jaruri bi ai ki jamini haqiqat se hum rubaru rahen

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  3. @SATYAJEET BY " KHUD KO JALANE KA INTEZAM KARTA HU" IT DOESNT MEAN THAT I AM READY TO JUMP IN FIRE. IT MEANS THAT I DARE TO LOVE. PEOPLE WHO FALL IN LOVE SUFFER A LOT AND EXCEPT KNOWING THE RESULT I DARE TO DO THE SAME.I THINK NOW THE THEME IS CLEAR.
    I AM VERY VERY THANKFUL FOR YOUR REVIEW.
    THANKS FOR ENCOURAGING ME.


    @ SHEPHALI VERY VERY THANKFUL TO YOU FOR YOUR COMMENTS.

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  4. excellent poem sumit....i loved it.

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