Monday 3 June 2013

ताना बाना


ताना बाना 




ज़िन्दगी तू कितनी तानो बनो से भरी है
कभी ज्येष्ठ की तरह सूखी
 तो कभी सावन सी हरी है
हमने सोचा माँगा  करेंगे तुझ से कुछ 
उन भिखारियों की तरह 
जिनके अहसास मर चुके हैं 
लेकिन ज़िन्दगी तू कितनी रंगीन है 
अहसासों को तूने ही तो जगाया था 
और बदसूरत होती इस दुनिया में 
उकताने से बचाया था 

 मांगने की फितरत नहीं  
इक ज़ज्बा  दिल में लिए 
अब जीने की तमन्ना है 
ज़िन्दगी 
तेरे इस तानो बनो में 
अब जीने का मज़ा आने लगा है 
गुज़र बसर का सलीका सिख कर 
शतरंज की बिसात बिछाने  लगा है 




Wednesday 22 May 2013

       हमने देखा है 



कंक्रीट के इन जंगलों में अब फूलो ने भी खिलना छोड़ दिया,
और इक अरसा बीत गया है तितलियों को देखे हुए,
हमने तो  रातरानी चमेली और कुमुदिनी तस्वीरो में ही देखा  है।


कहा गया वो ऋतू राज वसंत,
जो  प्रकृति को अपने रस में विभोर किया करता  था,
हमने तो शीत ऋतू के बाद सीधा ग्रीष्म का आगमन ही देखा है।

काफी मशक्कत कर  मानवनिर्मित प्रकृति बनाई है हमने ,
सोना तो कब का भूल चुके हैं,
सपना तो अब हमने जागती आँखों से ही देखा है।

- सुमित श्रीवास्तव