Wednesday 22 May 2013

       हमने देखा है 



कंक्रीट के इन जंगलों में अब फूलो ने भी खिलना छोड़ दिया,
और इक अरसा बीत गया है तितलियों को देखे हुए,
हमने तो  रातरानी चमेली और कुमुदिनी तस्वीरो में ही देखा  है।


कहा गया वो ऋतू राज वसंत,
जो  प्रकृति को अपने रस में विभोर किया करता  था,
हमने तो शीत ऋतू के बाद सीधा ग्रीष्म का आगमन ही देखा है।

काफी मशक्कत कर  मानवनिर्मित प्रकृति बनाई है हमने ,
सोना तो कब का भूल चुके हैं,
सपना तो अब हमने जागती आँखों से ही देखा है।

- सुमित श्रीवास्तव