झाकता हूँ जब अतीत के आइने मेँ,
तो सोचता हूँ कि,
वक्त बदल गया ,
या फिर वक्त ने मुझे बदल दिया।
पहले ये जिन्दगी दावोँ पर चलती थी,
अब उसके दावेदार हैँ कई।
इससे तो भली वहीँ जिँदगी थी,
जब चार आने के बाइस्कोप मेँ ज्यादा संतुष्टि मिलती थी।
अब समझौता कर लिया मैँने,
कि वो यादेँ दूर किसी शहर मेँ बसतीँ हैँ,
और वक्त का गुजरना तो एक नियति है।
- सुमित श्रीवास्तव
बड़ी अच्छी रचना है बंधू.......
ReplyDeleteयादों के समंदर में कहीं बह गए अब उन लम्हों को खोजता हूँ मैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
liked it.i also do some
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