Monday 6 September 2021

अनसुलझे सवाल


कुछ सवाल,

अब भी अनसुलझे हैं,

जवाब की उम्मीद है,

अरसा बीत गया इंतजार को।


हक़ से तुमने  तो सवाल किए थे,

जवाब कठिन था,

 शायद,

किंकर्तव्यविमुढ सा मैं,

सहा तुम्हारे मौन प्रतिकार को।


कौन कहता है ,

कि तुम आहिस्ता बहती हो

रेवा,

देखा है मैंने,

महेश्वर की घाट पर,

तुम्हारी अविरल धार को।











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