Wednesday 9 November 2011

फ्लस्बैक

ये यादें भी, 
लहरों की मानिंद आती हैं, 
 किनारों तक आ कर ,
 गुज़रे हुए कारवां पर ,
रेत ही तो बिछाती  हैं  .


उन खुबसूरत पलों से, 
रूबरू होने के लिए, 
हम रोज़ रेत उठातें हैं,
खुद की इजाद की हुई, 
 टाइम मशीन में बैठ कर,
फ्लस्बैक में  चले जाते हैं .

4 comments:

  1. very well said sumit....write more often.

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  2. thanx vidya jee. i will try my best.

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  3. बहुत अच्छा लिखा आपने !
    इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई !

    मेरे ब्लॉग पर आये
    manojbijnori12 .blogspot .com

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  4. बहोत अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढकर ।

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