Tuesday, 20 September 2022

जीवन सत्य

उस अंतिम सत्य ने, 
गूढ़ जीवन रहस्य को, 
आकस्मिक समझाया था।

सुदूर, अगम्य क्षितिज ने,
अनंत यात्रा का, 
मार्ग दिखाया था।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि,
श्लोक समवेत स्वर में,
पुरोहित के साथ दोहराया था।

इस सरित प्रवाह में,
बोझिल मन से,
बाबूजी की अस्थियां बहाया था।

पंचतत्व विलय ही तो,
नियति है,
केवल स्मृतियां सहेज लाया था।

कृतज्ञ हूं,
उस वर्षा जल का,
जिसने अश्रुओं को छुपाया था।

- सुमित श्रीवास्तव 

Tuesday, 21 September 2021

अवलंबन


अवलंबन

 क्षितिज साक्ष्य था,

जिजीविषा का तुम्हारी,

किया मैंने परित्राण।


अवलंब बना मैं निरीह,

एक वटवृक्ष का,

कर समर्पण तन और प्राण।


छांव मिले,

कल पथिक को तुमसे,

ईश्वर!न देना मुझे तनिक अभिमान।


स्पृहा अशेष अब,

इस सहचर्य धर्म में,

संभवतः सुलभ हो निर्वाण।

Monday, 6 September 2021

अनसुलझे सवाल


कुछ सवाल,

अब भी अनसुलझे हैं,

जवाब की उम्मीद है,

अरसा बीत गया इंतजार को।


हक़ से तुमने  तो सवाल किए थे,

जवाब कठिन था,

 शायद,

किंकर्तव्यविमुढ सा मैं,

सहा तुम्हारे मौन प्रतिकार को।


कौन कहता है ,

कि तुम आहिस्ता बहती हो

रेवा,

देखा है मैंने,

महेश्वर की घाट पर,

तुम्हारी अविरल धार को।











Thursday, 14 September 2017



प्रेयसी.....तुम ही कहो

तुम आशा हो
विश्वास हो
तुम अंतर्मन की आस हो
विभावरी में ध्रुवतारा की तलाश हो
या
सूरज की पहली किरण का प्रकाश हो
क्या हो तुम
प्रेयसी...... तुम ही कहो।

तुम्हे पाने का मोह है
क्योंकि बोध है मुझे
बिछुड़ने में चकवा चकई के क्रंदन सा विछोह है
भयाक्रांत हूँ
पर क्यों तुम
अथाह महासागर सी विश्रांत हो
प्रेयसी....... तुम ही कहो।

मौन प्रतिकार से
निरुत्तर सा रह जाता हूँ
जमघट में भी खुद को एकाकी पाता हूँ
पर क्या
तुम ही हो मेरी कवि कल्पित 
गंधर्व परिणीता


प्रेयसी...... तुम ही कहो।


- सुमित श्रीवास्तव
                  

Monday, 3 June 2013

ताना बाना


ताना बाना 




ज़िन्दगी तू कितनी तानो बनो से भरी है
कभी ज्येष्ठ की तरह सूखी
 तो कभी सावन सी हरी है
हमने सोचा माँगा  करेंगे तुझ से कुछ 
उन भिखारियों की तरह 
जिनके अहसास मर चुके हैं 
लेकिन ज़िन्दगी तू कितनी रंगीन है 
अहसासों को तूने ही तो जगाया था 
और बदसूरत होती इस दुनिया में 
उकताने से बचाया था 

 मांगने की फितरत नहीं  
इक ज़ज्बा  दिल में लिए 
अब जीने की तमन्ना है 
ज़िन्दगी 
तेरे इस तानो बनो में 
अब जीने का मज़ा आने लगा है 
गुज़र बसर का सलीका सिख कर 
शतरंज की बिसात बिछाने  लगा है 




Wednesday, 22 May 2013

       हमने देखा है 



कंक्रीट के इन जंगलों में अब फूलो ने भी खिलना छोड़ दिया,
और इक अरसा बीत गया है तितलियों को देखे हुए,
हमने तो  रातरानी चमेली और कुमुदिनी तस्वीरो में ही देखा  है।


कहा गया वो ऋतू राज वसंत,
जो  प्रकृति को अपने रस में विभोर किया करता  था,
हमने तो शीत ऋतू के बाद सीधा ग्रीष्म का आगमन ही देखा है।

काफी मशक्कत कर  मानवनिर्मित प्रकृति बनाई है हमने ,
सोना तो कब का भूल चुके हैं,
सपना तो अब हमने जागती आँखों से ही देखा है।

- सुमित श्रीवास्तव



Wednesday, 9 November 2011

फ्लस्बैक

ये यादें भी, 
लहरों की मानिंद आती हैं, 
 किनारों तक आ कर ,
 गुज़रे हुए कारवां पर ,
रेत ही तो बिछाती  हैं  .


उन खुबसूरत पलों से, 
रूबरू होने के लिए, 
हम रोज़ रेत उठातें हैं,
खुद की इजाद की हुई, 
 टाइम मशीन में बैठ कर,
फ्लस्बैक में  चले जाते हैं .