प्रेयसी.....तुम ही कहो
तुम आशा हो
विश्वास हो
तुम अंतर्मन की आस हो
विभावरी में ध्रुवतारा की तलाश हो
या
सूरज की पहली किरण का प्रकाश हो
क्या हो तुम
प्रेयसी...... तुम ही कहो।
तुम्हे पाने का मोह है
क्योंकि बोध है मुझे
बिछुड़ने में चकवा चकई के क्रंदन सा विछोह है
भयाक्रांत हूँ
पर क्यों तुम
अथाह महासागर सी विश्रांत हो
प्रेयसी....... तुम ही कहो।
मौन प्रतिकार से
निरुत्तर सा रह जाता हूँ
जमघट में भी खुद को एकाकी पाता हूँ
पर क्या
तुम ही हो मेरी कवि कल्पित
गंधर्व परिणीता
प्रेयसी...... तुम ही कहो।
- सुमित श्रीवास्तव