ताना बाना
ज़िन्दगी तू कितनी तानो बनो से भरी है
कभी ज्येष्ठ की तरह सूखी
तो कभी सावन सी हरी है
हमने सोचा माँगा करेंगे तुझ से कुछ
उन भिखारियों की तरह
जिनके अहसास मर चुके हैं
लेकिन ज़िन्दगी तू कितनी रंगीन है
अहसासों को तूने ही तो जगाया था
और बदसूरत होती इस दुनिया में
उकताने से बचाया था
मांगने की फितरत नहीं
इक ज़ज्बा दिल में लिए
अब जीने की तमन्ना है
ज़िन्दगी
तेरे इस तानो बनो में
अब जीने का मज़ा आने लगा है
गुज़र बसर का सलीका सिख कर
शतरंज की बिसात बिछाने लगा है